12 Bhagwat Geeta Shlok | जीवन को परिवर्तन करने वाले महावाक्य

कहाँ जाता है की जब कौरव और पांडवो के बिच युद्ध हो रहा था तो अर्जुन को मोह उत्पन हुआ की मैं कैसे अपने ही भाई, गुरुओ आदि से कैसे युद्ध करूं वो लेकिन दिखाया है की कैसे उस युद्ध मैं जो भगवान् ने उस समय श्लोक उच्चारित किये गए जिनके द्वारा अर्जुन का मोह समापत हुआ और वह युद्ध के लिए तैयार हुए

आज का मनुष्य भी इन Geeta shlok का अनुकरण यदि अपने जीवन मैं करले तो निश्चिन्त ही वह अपने इस कर्म क्षेत्र मैं विजय प्राप्त कर सकता है आज भी ये श्लोक अनेको के जीवन को परवर्तन करते है क्योकि ये श्लोक किसी मनुष्य के नहीं स्वय भगवान् द्वारा उच्चारित किये गए है तो आइये जानते है की कैसे हम अपने जीवन को भी इनके द्वारा परवर्तन कर सकते है आइये जानते है

 

नैनं छिद्रन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावक:।

न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुत॥

(द्वितीय अध्याय, श्लोक 23)

अर्थ:– आत्मा को न शस्त्र काट सकते हैं, न आग उसे जला सकती है। न पानी उसे भिगो सकता है, न हवा उसे सुखा सकती है।

Meaning:– Weapons cannot shred the soul, nor can fire burn it. Water cannot wet it, nor can the wind dry it.

 

 

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।

मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥

(द्वितीय अध्याय, श्लोक 47)

अर्थ:– कर्म पर ही तुम्हारा अधिकार है, लेकिन कर्म के फलों में कभी नहीं। इसलिए कर्म करो, फल की चिंता मत करो।

Meaning:– You have the right over your actions, but never over the fruits of your actions. So do your work, don’t worry about the results.

 

 

ध्यायतो विषयान्पुंसः सङ्गस्तेषूपजायते।

सङ्गात्संजायते कामः कामात्क्रोधोऽभिजायते॥

(द्वितीय अध्याय, श्लोक 62)

अर्थ:– विषयों वस्तुओं के बारे में सोचते रहने से मनुष्य को उनसे आसक्ति हो जाती है। इससे उनमें इच्छा पैदा होती है और इच्छा में विघ्न आने से क्रोध की उत्पत्ति होती है।

Meaning:– By thinking about objects, a person becomes attached to them. This creates desire in them and when the desire is hindered, anger arises.

 

Famous verses of Bhagwat Geeta

 

 

क्रोधाद्भवति संमोह: संमोहात्स्मृतिविभ्रम:।

स्मृतिभ्रंशाद्बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति॥

(द्वितीय अध्याय, श्लोक 63)

अर्थ:– क्रोध से मनुष्य की मति मारी जाती है। मति मारी जाने से मनुष्य की बुद्धि नष्ट हो जाती है और बुद्धि का नाश हो जाने पर मनुष्य खुद का अपना ही नाश कर बैठता है।

Meaning:– Man’s mind is destroyed by anger. Man’s intellect is destroyed and when his intelligence gets destroyed, man destroys himself.

 

 

यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जन:।

स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते॥

(तृतीय अध्याय, श्लोक 21)

अर्थ:– श्रेष्ठ पुरुष जो-जो आचरण करते हैं, दूसरे मनुष्य भी वैसा ही आचरण, वैसा ही काम करते हैं। वह जो प्रमाण या उदाहरण प्रस्तुत करता है, समस्त मानव-समुदाय उसी का अनुसरण करने लग जाते हैं।

Meaning:– Whatever behavior the great men do, other people also behave in the same way and do the same work. Whatever proof or example he presents, the entire human community starts following him.

 

 

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत:।

अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्॥

(चतुर्थ अध्याय, श्लोक 7)

अर्थ:– हे भारत, जब-जब धर्म का लोप होता है और अधर्म में वृद्धि होती है, तब-तब मैं धर्म के अभ्युत्थान के लिए स्वयम् की रचना करता हूँ।

Meaning:– O Bharat, whenever Dharma vanishes and unrighteousness increases, I create Myself for the revival of Dharma.

 

Popular Bhagavad Geeta shlok with translation

 

हतो वा प्राप्यसि स्वर्गम्, जित्वा वा भोक्ष्यसे महिम्।

तस्मात् उत्तिष्ठ कौन्तेय युद्धाय कृतनिश्चय:॥

(द्वितीय अध्याय, श्लोक 37)

अर्थ:– यदि तुम युद्ध में वीरगति को प्राप्त होते हो तो तुम्हें स्वर्ग मिलेगा। और यदि विजयी होते हो तो धरती का सुख को भोगोगे। इसलिए उठो, हे कौन्तेय निश्चय करके युद्ध करो।

Meaning:– If you die in battle, you will get heaven. And if you are victorious, you will enjoy the happiness of the earth. Therefore arise, O Kaunteya, and fight.

 

 

परित्राणाय साधूनाम् विनाशाय च दुष्कृताम्।

धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे-युगे॥

(चतुर्थ अध्याय, श्लोक 8)

अर्थ:– सज्जन पुरुषों के कल्याण के लिए और दुष्कर्मियों के विनाश के लिए और धर्म की स्थापना के लिए। मैं युगों-युगों से प्रत्येक युग में जन्म लेता आया हूँ।

Meaning:– For the welfare of noble men and for the destruction of evildoers and for the establishment of religion. I have been taking birth in every era for ages.

 

श्रद्धावान्ल्लभते ज्ञानं तत्पर: संयतेन्द्रिय:।

ज्ञानं लब्ध्वा परां शान्तिमचिरेणाधिगच्छति॥

(चतुर्थ अध्याय, श्लोक 39)

अर्थ:– श्रद्धा रखने वाले मनुष्य, अपनी इन्द्रियों पर संयम रखने वाले मनुष्य, साधनपारायण हो अपनी तत्परता से ज्ञान प्राप्त करते हैं, फिर ज्ञान मिल जाने पर जल्द ही परम-शान्ति को प्राप्त होते हैं।

Meaning:– People who have faith, who have control over their senses, who are devoted to the means, acquire knowledge with their own will, then after getting the knowledge, they soon attain ultimate peace.

 

 

पत्रं पुष्पं फलं तोयं यो मे भक्त्या प्रयच्छति।

तदहं भक्त्युपहृतमश्नामि प्रयतात्मन:॥

(नवम अध्याय, श्लोक 26)

अर्थ:– जो कोई भक्त मेरे लिये प्रेम से पत्ती, पुष्प, फल, जल आदि अर्पण करता है, उस शुद्ध बुद्धि निष्काम प्रेमी भक्त का प्रेमपूर्वक अर्पण किया हुआ वह पत्ती-पुष्पादि मैं सद्गुण रूप से प्रकट होकर प्रीति सहित खाता हूँ।

Meaning:– Any devotee who lovingly offers leaves, flowers, fruits, water, etc. for me, I appear in the form of virtue and eat with love those leaves and flowers lovingly offered by that pure minded, selfless loving devotee.

 

यस्मान्नोद्विजते लोको लोकान्नोद्विजते च य:।

हर्षामर्षभयोद्वेगैर्मुक्तो य: स च मे प्रिय:॥

(द्वादश अध्याय, श्लोक 15)

अर्थ:– जिससे किसी को कष्ट नहीं पहुँचता तथा जो अन्य किसी के द्वारा विचलित नहीं होता, जो सुख-दुख में, भय तथा चिन्ता में समभाव रहता है, वह मुझे अत्यन्त प्रिय है।

Meaning:– The one who does not hurt anyone and who is not disturbed by anyone else, who remains equanimous in happiness and sorrow, fear and worry, is very dear to me.

 

सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।

अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुच:॥

(अष्टादश अध्याय, श्लोक 66)

अर्थ:– सभी धर्मो को छोड़कर मेरी शरण में आ जाओ। मैं तुम्हे सभी पापो से मुक्त कर दूंगा, इसमें कोई संदेह नहीं हैं।

Meaning:– Leave all religions and come to me. I will free you from all your sins, there is no doubt about it.

 

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